जिनसे पुछा, तुम कहाँ से हो
वो मेरे ही कोई अपने थे
मेरी ही तरह आधे-अधुरे
उनके भी कुछ सपने थे
सबकी तरह शहर वो आये,
साथ मे चंद अरमान ही थे
बेहतर ज़िंदगी की खातिर
बदतर दिनों से वो लडते थे
कुछ लोग ठेला चलाते थे
कुछ तो कारीगर अच्छे थे
मजदूर थे, मुफलिस थे वो
मेहनत के निवाले सच्चे थे
कौन थे वो, कहाँ से आये थे
क्या साथ मे बीवी-बच्चे थे?
रहम तो खाते उस बस्ती पर
मकान भी जहां पर कच्चे थे
इधर-उधर जो बिखर गये है,
बस ऐसे ही कुछ घोंसले थे
नन्ही चिड़िया इनमे चहकती
और चंद बुलंद हौसलें थे
सुख, दुख मे जो साथ निभाते
मेरे अपने सगे वो सारे थे
एक माँ से अब कैसे पुछोगे
कौनसे बच्चे उसके प्यारे थे
बताओ, क्या फर्क है दोनों मे
कौनसा अपना, कौनसा पराया है
जो खौलता है तुम्हारी रगों मे,
और वो खून जो तुमने बहाया है!
~ Manish (25/2/2020)
© Manish Hatwalne
Trigger – This news on Bangladeshi suspects and Delhi Riots in Feb 2020 with moving images like the one in the featured image from Prashant Kumar’s tweet and another one by Runjhun Sharma.
It is serendipitous – I wrote this poem, and found Prashant Kumar’s photos on twitter! I am thankful to him for allowing me to use his photo on my blog. Here is his original tweet –
One thought on “मेरे अपने…”