You can never go home again…

"दुसरे शहर तो तुम आओगे नहीं कभी"
यूँ ही कह दिया उन्होने.

अब कैसे बताऊँ,
ये शहर भी तो मेरा नहीं.

और फिर,
मेरा अपना शहर कौनसा है,
ये ढूँढना अब मुमकीन नहीं...

~ © Manish Hatwalne (30-April-2022)

Title borrowed from Lord Merlynn’s You can never go home again, since it goes quite well with this short verse.

बस शांती बनाये रखिये

पानी के लिये पिटाई, कहां हुई मत पुछिये
उस अभागे के लिये, आप जादा मत सोचिये|

चंदा देने को कहा है, तो चंदा देकर जाइये,
पैसा खर्च कहां होगा, ये पुछताछ मत किजिये|

थाली बजा कर जाइये, बत्ती बंद कर दिजिये
इन सबसे होगा क्या, ये सवाल मत किजिये|

हमने जो कह दिया, उसे सच मान लिजिये,
उल्टी-सीधी कोई बात, छानबिन भी मत किजिये|

वर्ना नतीजा क्या होगा, खुद ही समझ लिजिये
आप शरीफ़ लगते है, आप रिस्क मत लिजिये|

सवाल मत किजिये, अपनी राय मत दिजिये,
अब हमारा राज है, बस शांती बनाये रखिये|

~ Manish (14/3/2021)

© Manish Hatwalne

वक़्त का क्या है, गुज़रता है, गुज़र जायेगा…

जो ख़ुशबू बनकर महकती हो
साँसों को आज बहकने दो
कल शायद इस सीने में,
फ़क़त धुआँ रह जायेगा.

वक़्त का क्या है,
गुज़रता है, गुज़र जायेगा…

ख्वाबों की तरह आती हो
मूंद कर पलकें छूने दो
कल शायद मर्ग-आग़ोश में,
यहीं लम्हा रह जायेगा.

वक़्त का क्या है,
गुज़रता है, गुज़र जायेगा…

जो हाथों मे तेरा हाथ है
उम्र-सफ़र यूँही चलने दो
कल शायद इन राहों पर,
कोई तन्हा रह जायेगा.

वक़्त का क्या है,
गुज़रता है, गुज़र जायेगा…

इन मासूम, नन्हे हाथों को
आज गले से लिपटने दो
कल शायद ये अक्स अपना,
अपना कहाँ रह जायेगा.

वक़्त का क्या है,
गुज़रता है, गुज़र जायेगा…

माना ख़ाक में मिल जाना है
कुछ अपना छोड़ जाने दो
कल शायद इन सितारों में,
कहीं निशाँ रह जायेगा.

वक़्त का क्या है,
गुज़रता है, गुज़र जायेगा…


पलको में छुपाये रख्खे है
आँखों मे आज उभरने दो
कल शायद हर ख़्वाब अपना,
यूँही अश्क बन जायेगा.

वक़्त का क्या है,
गुज़रता है, गुज़र जायेगा…

उम्र-भर जख़्म खाये है
आबला-पा ही चलने दो
कल शायद बैठे रहने से,
जख़्म नासूर बन जायेगा.

वक़्त का क्या है,
गुज़रता है, गुज़र जायेगा…

जो राहनुमा सितारा गुम है
तो आज यूँही भटकने दो
कल शायद इन क़दमों से,
रास्ता नया बन जायेगा.

वक़्त का क्या है,
गुज़रता है, गुज़र जायेगा…

ज़िद जो हमने ठानी है
मंज़िल को आज तरसने दो
कल शायद इन राहों पर,
अपना गुमाँ रह जायेगा.

वक़्त का क्या है,
गुज़रता है, गुज़र जायेगा…

माना ख़ाक में मिल जाना है
कुछ अपना छोड़ जाने दो
कल शायद इन सितारों में,
कहीं निशाँ रह जायेगा.

वक़्त का क्या है,
गुज़रता है, गुज़र जायेगा…

~ Manish (25/8/2020)
© Manish Hatwalne


Credits:

‘वक़्त का क्या है, गुज़रता है, गुज़र जायेगा’ is a मिस्रा borrowed from famous poet Ahmad Faraz. I have based my poem on this line, with its core idea as The time will pass anyway.…’. Today (25th August) is Faraz’s death anniversary, so I decided to complete this today. This is my tribute to this great poet.

You can see the original couplet by Ahamd Faraz below –

वक़्त का क्या है, गुज़रता है, गुज़र जायेगा...
वक़्त का क्या है, गुज़रता है, गुज़र जायेगा… (PC: rekhta.org)

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